14/2/09

कैसे और कहाँ से यह ऊर्जा पैदा होती है?

लेखक: शम्भु चौधरी

"जीवन ऊर्जा" के पिछले भाग में हम इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि कैसे और कहाँ से यह ऊर्जा पैदा होती है? इसी बीच मैंने किसान के आत्महत्या की बात जोड़ दी। आप भी सोच में पड़ गये होंगे कि "जीवन ऊर्जा" के इस विषय से किसान की बात का क्या लेना-देना। बीच-बीच में कहीं हम अपने मूल विषय से भटक तो नहीं जाते?
हाँ ! हम अपने मूल विषय से भटक गये थे। इसी प्रकार हम जब किसी कार्य को करते हैं तो हमारे अन्दर एक साथ कई ग्रंथियाँ कार्य करने लगती है जो हमें अपने कार्य को पूरा करने नहीं देती। कई बार कार्य करने की क्षमता समाप्त होने लगती है। शरीर थोड़ा विश्राम खोजने लगता है। ठीक इसी प्रकार मस्तिष्क भी कार्य करते-करते कुछ विराम चाहता है। पुनः विश्राम के पश्चात हम नई ऊर्जा के साथ कार्य करने लगते हैं। इस प्रक्रिया में जो ऊर्जा प्राप्त होती है हम इसे भी ऊर्जा की श्रेणी में रख सकते हैं। परन्तु हम यहाँ जिस ऊर्जा की बात कर रहे हैं उससे शरीर की थकावट का कोई लेना-देना नहीं होता।
आप किसी खेल के मैदान में एक साथ हजारों लोगों को देखते होगें। दो टीम खेल रही होती है। देखने वाले भी दो भागों में बँटे हुए होते हैं। खेल एक ही है। एक टीम द्वारा गोल करते ही, समर्थकों में अचानक से एक साथ ऊर्जा का संचार देखा जा सकता है, जबकि ठीक इसके विपरीत दूसरे समूह के समर्थकों में निराशा झलती है। यह हमारे-आपके जीवन का अंग सा बन गया है। इसे किसी मनोचिकित्सक या वैज्ञानिकों की नजरों से नहीं देखा जा सकता। बस यही मार्ग है कि हम किस बात को किस रूप में अपनाते हैं। जो बातें हमें अच्छी लगती है तो हममें ऊर्जा का संचार होने लगता है और जो हमें नहीं अच्छी लगती, हमारी ऊर्जा सुस्त हो जाती है या विपरीत दिशा में कार्य करने लगती है।
ठीक इसी प्रकार हमारे शरीर के अन्दर दो ग्रंथियाँ कार्य करती है। एक जो हमें ऊर्जा प्रदान करती है दूसरी हममें उत्पन्न होनी वाली ऊर्जा को नष्ट करने का कार्य करती है। हमें यह देखना होगा कि कौन सी ग्रंथि हमारे जीवन में ज्यादा प्रभावी हो रखी है। जिस व्यक्ति के जीवन में कार्य करने का उत्साह बना रहता है उसके व्यक्तित्व/चेहरा हमेशा तेज से चमकता मिलेगा। वहीं सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले कर्मचारियों के चेहरे हमेशा सुस्त और मुरझाये हुए मिलेगें। जबकि उनको किसी बात की चिन्ता नहीं रहती कि माह के अन्त में घर का खर्च कहाँ से लायेंगे। क्रमश:

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