12/2/09

किसान क्यों आत्महत्या करता है?

लेखक: शम्भु चौधरी

प्रायः हम देखतें हैं कि अक्सरां ही आदमी बात-वे-बात मस्तिष्क में तनाव को पाले रखतें हैं। जो किसी न किसी प्रकार से मानसिक दबाव का कारण बना रहता है। एक बार मेरे एक मित्र ने अपने कर्मचारी को चाय लाने को कहा। जब वह चाय लेकर आया तो उसे थोड़ी देरी हो गई। चाय भी ठंडी थी, बस क्या था उनके चेहरे पर तनाव ने अपनी जगह बना ली। साधरणतः इसका मूल कारण यह है कि हमारी ऊर्जा जब अधिक हो जाती है तो उसे निकलने का कोई माध्यम चाहिये जैसे आपने देखा होगा कि जब कोई व्यक्ति, किसी व्यक्ति की बात को अनसुनी कर दे तो, वह व्यक्ति चिल्लाने या जोर-जोर से बोलने लगता है। अर्थात उसके अन्दर बोलने की ऊर्जा उत्पन्न हो रही है परन्तु कोई सुनना नहीं चाहता। बस वह व्यक्ति चिल्लाने लगता है। कई बार हम अपने घरों में अपने बच्चों से या परिवार के अन्य बड़े सदस्यों से हम बात नहीं करते तो उनकी यह ऊर्जा या तो नष्ट होने लगती है या फिर उसे मानसिक रोगी बना देती है।
"जीवन ऊर्जा" के महत्व को तब तक हम नहीं समझ पायेंगे जब तक इसके मुख्य लक्षण को हम पहचानने का प्रयास नहीं करेंगे। भले ही हम कितने ही मनोचिकित्सक या वैज्ञानिक प्रयोग इस पर कर लें हम कभी भी सफल नहीं हो सकते। इसके लिये आज हम कुछ विषय से ह्टकर बातें करते हैं।


कई बार मैं सोचता हूँ कि-
"भारत के अर्थशास्त्री जब तक वातानुकूलित चेम्बर में बन्द होकर विदेशी ज्ञान के बल पर भारत के भाग्य का फैसला करते रहेंगे तब तलक भारत के किसानों का कभी भला नहीं हो सकता। भारत में जो किसान सोना पैदा कर रहे हैं वे तो भूखों मर रहें हैं और जो लोग इसका व्यापार कर रहें हैं वे देश के सबसे बड़े धनवान होते जा रहें हैं। इसकी मूल समस्या है हमारे अन्दर का ज्ञान जो गलत दिशा से अर्जित की हुई है। एक मजदूर जब काम करता है तो उसके पास सिर्फ इतना ही ज्ञान होता है कि उसे जो बताया जाय वह कार्य कर दे। ये सभी अर्थशास्त्री मात्र मजदूरी कर रहें है। इस देश के अर्थशास्त्री के दिमाग में पता नहीं किस खेत का भूसा भरा हुआ है कि वे इतनी छोटी सी बात को भी नहीं समझ पा रहे कि देश में सिर्फ किसान ही आत्महत्या क्यों करता है? एक उद्योगपति क्यों नहीं आत्महत्या करता? अभी हाल ही में सत्यम के मालिक ने करोड़ों रुपये की हेराफेरी कर दी। सरकार उसे बचाने में जुट गई। दुनिया में कई बड़ी-बड़ी कम्पनियां दिवालिया घोषित होती जा रही है, क्रम अभी भी रुका नहीं है। इनमें से हम किसी को भी आत्महत्या करते नहीं देखे, न ही किसी ने सुना ही है। परन्तु जब किसी किसान की फसल नष्ट होती है तो वह क्यों आत्महत्या कर लेता है?"
-क्रमश:

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